भीमा कोरेगांव का इतिहास।
चलो हम आज बात करते है उन महान योद्धाओ के बारेमे जिन योद्धाओ ने सिर्फ 12 घंटे में 28000 की 1सेनाको धूल चटाई थी। और उनकी संख्याभी ज्यादा नही थे वो सिर्फ 500 ही थे। चलो तो आज हम 500 महार योद्धाओ द्वारा युद्ध विजय की गौरव गाथा को आपको सुनाते है।
ये बात है लगभग 200 साल पुरानी जब जातिवाद अपनी उच्चतम परकाष्ठा पर था। जातिवाद उतना था के उस समय के दबे कुचले लोगो को अपने पीछे जाडु ओर आगे मटका बंधना पड़ता था ये सब पेशवाओ के मार्शल लो कि वजह से।
तब अंग्रेजोने अपने राज्य विस्तार के लिए पुणे के पेशवाओ को जीतने का ठान लिया परंतु उनके पास युद्ध लड़नके लिए सैनिक नही थे। तभी वहा के अंग्रेज ऑफीसर वहा से गुजर रहे थे तब एक आदमी को देखा जो एक ही कुल्हाड़ी के वार से पूरे पेड़ के तने को फाड़ दे रहा था और उसके पास जाकर जानकारी ली तो उस अंग्रेज ऑफिसर कर को पता चला के ये एक महार है।
जब महारो को अंग्रेजी सेना में सामिल होने का आग्रह किया और पेशवाओ की तानसाही ओर मार्शल लो से आजद करने की बात बोली गई तब महारोने हजारो वर्षो से भारत के निवासी थे और अंग्रेज भारत मे अपना पेर जमाना चाहते थे महारो ने सोचा ओर पेशवा ओ को एक मौका देते हुवे अपनी सेना में उच्च पद दिनों को ओर उनको उचित मान समान देने को कहा पर पेशवा उनकी तानासाही से एक कदम भी पीछे हटना नही चाह रहे थे महार के मुखिया सिद्नाथ से कहा तुम हमारे पैरो की धूल हो और रहोगे तुम अछुतो को कोई अधिकार नही मिलेगा फिर महारो ने अपने आत्मसमांन की लड़ाई को चुना महार उनको न्याय और समान मिले उसके लिए अंग्रेजो का साथ दिया।
अब दिन था 1 जनवरी 1818 का जब 28000 कि बड़ी सेना के सामने थे 500 महार सैनिक । ओर युद्ध हुवा था भीमा नदी के किनारे स्थित कोरेगांव के मैदान में ओर इन 500 महार सैनिको ने सिर्फ 12 घंटो में पूरी पेशवाई सेना को धूल चटा दी। और अंग्रेजो ने इस विजय की याद में कोरेगांव में ही एक विजय स्तंभ बनाया और सहीद हुए 49 महार सैनिको के नाम भी लिखे।
1 जनवरी 1927 के दिन बाबा साहब आंबेडकर द्वारा क्रंतिकारी संघर्स के प्रतीक भीमा नदी के तल पर स्तभ को नमन किया गया तभीसे हर 1 जनवरी को दलित समुदाय वहां इखट्टा होकर विजय दिवस मनाने लगे।
कौशल असोडिया
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